चंद्रयान-2 की मुख्य लक्ष्यों में से एक था चंद्रमा के दक्षिणी पोल पर उपग्रह भेजना और वहां वैज्ञानिक अध्ययन करना। इस उद्यान के दौरान कुछ चीजें अप्रत्याशित तरीके से हुईं जिसके कारण चंद्रयान-2 विफल हो गया।

पहली गलती थी निर्माण प्रक्रिया में। चंद्रयान-2 की निर्माण के दौरान खराब इलेक्ट्रॉनिक इलेमेंट का उपयोग किया गया था,

जिससे उपग्रह की प्रणाली ठीक से काम नहीं कर पाई। यह एक महत्वपूर्ण कारक रहा जो चंद्रयान-2 की सफलता को प्रभावित कर गया।

दूसरी गलती थी ड्रैग-रेजिस्टर यानि संवेग-पंजीकरण का अस्थायी अभाव। जब चंद्रयान-2 अपने उपग्रह को चंद्रमा के दक्षिणी पोल तक पहुंचाने के लिए प्रयास कर रहा था

तब उसे यह समझने में मुश्किल हुई कि कितना समय लगेगा उसे लंबी दूरी तक पहुंचाने में। इसके कारण, यह अपने लक्ष्य को बचाने के लिए संवेग-पंजीकरण प्रणाली का उपयोग नहीं कर सका।

तीसरी गलती थी नवाचार कोण (orientation) पर समस्या। चंद्रयान-2 की प्राथमिक उपग्रह मिशन में नवाचार कोण को सही ढंग से निर्धारित करने में समस्या आई। इससे उपग्रह की दिशा गलत हो गई और वह अपने निर्धारित मार्ग से हट गया।

इन गलतियों के कारण चंद्रयान-2 को अपने मुख्य लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाने में विफलता का सामना करना पड़ा। हालांकि, यह विफलता एक महत्वपूर्ण सीख है

और इससे हमें अनुमानित चुनौतियों का सामना करने की आवश्यकता और मजबूती मिली है।

चंद्रयान-2 की विफलता ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान को एक महत्वपूर्ण चेतावनी दी है। हमें आगे बढ़ते समय में और अधिक सतर्क और सतर्क रहने की आवश्यकता है

ताकि हम इस तरह की त्रुटियों को दूर कर सकें और सफलता की ओर बढ़ सकें।

ताकि हम इस तरह की त्रुटियों को दूर कर सकें और सफलता की ओर बढ़ सकें।