नियोजन क्या है? जानिए इसके उद्देश्य और प्रकार क्या है?

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नियोजन क्या है: आपकी दुनिया में नियोजन के बिना लगभग कोई भी काम नहीं किया जा सकता है नियोजन का बिजनेस और अन्य क्षेत्रों में बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण स्थान रहा था और है।

तो दोस्तों यदि आप नियोजन के बारे में जानकारी जुटाना आए हैं तो इस ब्लॉक पर आपका बहुत-बहुत स्वागत है मैं आपको इस ब्लॉक के माध्यम से नियोजन क्या होता है।

और उनके उद्देश्य क्या है और उनके क्या-क्या प्रकार है इन सभी के बारे में विस्तार से जानकारी हासिल करेंगे।

नियोजन का अर्थ क्या होता है?

जो हमारे वर्तमान परिस्थितियों में घटना घटना है उसे वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भविष्य के रूप रेखा को बनाने के

लिए आवश्यक क्रियाकलाप के बारे में चिंतन मनन करना ही आयोजन या नियोजन कहलाता है।

जिसे हम लोग इंग्लिश में प्लानिंग भी कहते हैं चलिए दोस्तों अब जानते हैं कि नियोजन के प्रबंधन की मुख्य क्या-क्या घटक होते हैं।

नियोजन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा भावी विदेशियों और उन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले कार्यों को निर्धारित किया जाता है।

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इसके अलावा उन सभी परिस्थितियों की जांच की जाती है जिसे इसका सरोकार हो इस प्रक्रिया में किए जाने वाले कार्यों के संबंध में महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर भी निर्धारित किए जाते हैं।

जैसे की कार्य को कब करना है कहां पर करना है किस तरह से करना है और किन के माध्यम से करना है इन सभी संसाधनों से करना है किस नियम और किन प्रक्रियाओं से करना है उनके अनुसार किया जाता है।

प्रभावशाली प्रबंध बनाने के लिए नियोजन उपक्रम की समस्त क्रियो में आवश्यक होता है लेकिन निर्धारण तथा उसे तक पहुंचने तक के मार्ग निश्चित किए बिना संगठन

अभिप्रेरणा समन्वय तथा नियंत्रण का कोई भी महत्व नहीं रह जाएगा जब नियोजन के अभाव में क्रियो का पुनर निर्धारण नहीं होगा।

तब ना तो कुछ कार्य संगठन को करने को ही होगा ना समन्वय को और नहीं अभिप्रेरणा और नियंत्रण को।

नियोजन के उद्देश्य से क्या-क्या है?

1.जानकारी प्रदान करना:

नियोजन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य संस्था में कार्यरत कर्मचारियों एवं बाहरी व्यक्तियों को उपक्रम के लक्ष्य एवं उप-लक्ष्य की जानकारी प्रदान करना तथा इन्हें प्राप्त करने की विधियों के संबंध में भी सूचना प्रदान करना भी है।

2.विशिष्ट दिशा प्रदान करना:

नियोजन द्वारा किसी विशेष कार्य विशेष की भावी और रूपरेखा बनाकर उसे एक ऐसी विशेष दिशा प्रदान करने का प्रयत्न किया जाता है जो कि इसके अभाव में लगभग असंभव प्रतीत होती है।

3.कुशलता मैं वृद्धि करना:

नियोजन का एक मूलभूत उद्देश्य उपक्रम की कुशलता में वृद्धि करना है। सर्वोत्तम विकल्प के चयन और व्यवस्थित ढंग से कार्य किए जाने के कारण उपक्रम की कार्य कुशलता में वृद्धि स्वाभाविक ही है।

4. प्रबंध में मितव्ययिता:

उपक्रम की भावी गतिविधियों की योजना के बन जाने से प्रबंध का ध्यान उसे कार्यान्वित करने की ओर केंद्रित हो जाता है जिसके फल स्वरुप क्रियो में अवयव की स्थान पर मितव्ययिता आती है।

5.स्वास्थ्य मोर्चाबंदी:

नियोजन का उद्देश्य स्वास्थ्य मोर्चा बंदी को विकसित करना भी है पूर्व अनुमान व सर्वोत्तम विकल्प के चयन द्वारा सही मोर्चाबंदी या नई रचना तैयार की जा सकती है।

6.भावी कार्यों में निश्चित:

नियोजन के माध्यम से संस्था की भावी गतिविधियों में अनिश्चित की स्थान पर निश्चित लाने का प्रयास किया जा सकता है।

7. जोखिम एवं संभावनाओं को परखना:

नियोजन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य संस्था के भावी जोखिम एवं संभावनाओं की पारक करना है इस प्रकार अनेक भावी जोखिमों को से बचने के लिए आवश्यक उपाय किया जा सकता है।

8. निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति करना:

नियोजन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य निर्धारित लक्षण की प्राप्ति के लिए निरंतर कोशिश करते रहना।

9. समय एवं समन्वय की स्थापना करना:

नियोजन द्वारा उपक्रम की विभिन्न गतिविधियों में समय एवं समन्वय स्थापित किया जाता है।

10. प्रतिस्पर्धा पर विजय पाना:

दाव पेच पूर्ण नियोजन प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र में विजय पाने में सहायक सिद्ध होता है कार्य कुशलता एवं मितव्ययिता से किए जाने के कारण प्रतिस्पर्धा का सामना किया जा सकता है।

 नियोजन का महत्व

व्यावसायिक क्षेत्र में अनेक परिवर्तन आते रहते हैं जो उपक्रम के लिए विकास एवं प्रगति का मार्ग ही नहीं खुलती इसके अलावा अनेक जोखिमों एवं अन्य अनिश्चित को भी उत्पन्न कर देते हैं।

प्रति स्पर्धा, प्रौद्योगिकी सरकार नीति, आर्थिक क्रिया श्रम  पूर्ति कच्चा माल तथा सामाजिक मूल्यों एवं मान्यताओं में होने वाले परिवर्तनों के कारण आधुनिक व्यवसाय का स्वरूप अत्यंत जटिल हो गया है।

ऐसे परिवर्तनशील वातावरण में नियोजन के आधार पर ही व्यावसायिक सफलता की आवश्यकता की जा सकती है।

आज की युगीन नियोजन का विकास प्रत्येक कम की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है।

व्यवसाय के बर्बादी दुरुपयोग एवं जोखिमों को नियोजन के द्वारा ही कम किया जा सकता है नियोजन की आवश्यकता एवं महत्व को निम्न बिंदुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है।

1.पहले अनिश्चित में कमी

भविष्य निश्चित तथा परिवर्तनों से भरा होने के कारण नियोजन अधिक आवश्यक हो जाते हैं नियोजन के माध्यम से अनिश्चितताओं को बिल्कुल समाप्त तत्व नहीं किया जा सकता परंतु कम अवश्य किया जा सकता है।

पूर्वानुमान जो नियोजन का आधार है की सहायता से एक प्रबंधक भविष्य का बहुत कुछ सीमा तक ज्ञान प्राप्त करने तथा भावी परिस्थितियों को अपने अनुसार मोड़ने में समर्थ हो सकता है।

तथ्यों के विश्लेषण के आधार पर निकल गए निष्कर्ष बहुत कुछ सीमा तक एक व्यवसाय को अनिश्चितताओं से निपटने का धार तैयार कर देते हैं।

2. नियंत्रण में सुगमता

कार्य पूर्व निर्धारित कार्य विधि के अनुसार हो रहा है या नहीं यह जानना ही नियंत्रण का कार्य नियोजन के माध्यम से कार्य प्रारंभ करने की विधि तय की जाती है ताकि प्रमाण निर्धारित किए जा सके ऐसी कई तकनीक का विकास हो चुका है।

जिसे नियोजन एवं नियंत्रण में गहरा संबंध स्थापित किया जा सकता है जो तकनीक नियोजन में काम में ली जाती है।

वह ही आगे चलकर नियंत्रण का आधार बनती है इसलिए यदि नियोजन को नियंत्रण की आत्मा कर दिया जाए तो इसमें कोई गुंजाइश नहीं होगी।

3.समन्वय में सहायता

समन्वय सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए विभिन्न क्रियो की एक व्यवस्थित प्रथा है इसके माध्यम से उपक्रम के उद्देश्यों को प्राप्त करना सरल हो जाता है।

क्योंकि योजनाओं चुने हुए मार्ग है इसलिए इसकी सहायता से प्रबंधक संघर्ष के स्थान पर सहयोग जागृत कर सकता है।

जो की विभिन्न क्रियो में समन्वय स्थापित करने में मदद कर देता है इसके अतिरिक्त विषय विभिन्न क्रियो का इस प्रकार निर्धारण करता है जिससे समन्वय लाना आवश्यक बन जाता है।

4.उतावली निर्णय पर रोक

नियोजन के अंतर्गत सभी कार्य काफी सोच विचार के पश्चात ही हाथ में लिए जाते हैं इसलिए उतावली नहीं हूं मैं होने वाली हानि से बचा जा सकता है।

5. पूर्णता का ज्ञान

उपक्रम को पूर्णता में देखने के कारण एक प्रबंधक प्रत्येक क्रियो के बारे में संपूर्ण ज्ञान प्राप्त कर पता है ताकि जिस आधार पर उसके कार्य का निर्धारण किया गया है उसे जानने का अवसर भी इस नियोजन के माध्यम से ही मिल पाता है।

6. अपवाद द्वारा प्रबंध

अपवाद द्वारा प्रबंधन से अर्थ यह है कि प्रबंधन को प्रत्येक क्रिया में सम्मिलित नहीं होना चाहिए यदि सब काम ठीक-ठाक चल रहा हो तो प्रबंधक को निश्चित रहना चाहिए और केवल उसी समय बीच में आना चाहिए।

जब कार्य नियोजन के अनुसार ना चल रहा हो नियोजन द्वारा संस्था के उद्देश्य से निर्धारित कर दिए जाते हैं और सभी प्रयास उनको प्राप्त करने के लिए किए जाते हैं।

इस प्रकार प्रबंध को दैनिक कार्यों में उलझने की आवश्यकता नहीं है अतः कहा जा सकता है कि नियोजन से अपवाद द्वारा प्रबंध संभव है।

जिसके परिणाम स्वरुप प्रबंधकों के पास इतना समय बच जाता है कि वह और आर्थिक सोच विचार करके श्रेष्ठ योजनाएं  तैयार करें।

7.कर्मचारियों के सहयोग एवं संतुष्ट में वृद्धि

नियोजन द्वारा विभिन्न कर्मचारी को इस बात की जानकारी हो जाती है कि विभिन्न कर्मचारी को कब क्या और कैसे करना है?

अपनी भावी क्रियो की पूर्ण जानकारी हो जाने पर वह मानसिक रूप से तैयार हो जाते हैं और जैसे ही कार्य का समय आता है।

वह उसे अधिक लगन हुआ मेहनत के साथ करते हैं मेहनत से किए कार्यों से साथ बढ़ती है और संस्थान को लाभ प्राप्त होता है इससे कर्मचारियों को संतुष्टि प्राप्त होती है तथा आपसी सहयोग को बढ़ावा मिलता है।

8.निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति करना

नियोजन का अंतिम एवं सबसे अधिक महत्वपूर्ण उद्देश्य निर्धारित लक्षण की प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयत्न करते रहना है।

9.विशिष्ट दिशा प्रदान करना

नियोजन द्वारा किसी कार्य विशेष की भावी रूपरेखा बनाकर उसे एक विशेष दिशा प्रदान करने का प्रार्थना किया जा सकता है जो कि इसके अभाव में लगभग असंभव प्रतीत होती है।

नियोजन की कठिनाइयां, सीमाएं एवं आलोचनाएं

नियोजन का उपयुक्त महत्व होते हुए भी कुछ विद्वान ने इसका समय एवं धन की बर्बादी अथवा बरसाती ऑले कहकर इसका विरोध करते हैं।

उनका कहना है कि व्यावसायिक योजनाएं अनिश्चित एवं अस्थिर परिस्थितियों के पृष्ठभूमि में तैयार की जाती है।

जब इनका आधार ही अनुचित है तो फिर यह कैसे माना जा सकता है कि नियोजन द्वारा निर्धारित बातें सदा-सत प्रतिशत सत्य ही होगी।

इस विरोध का मूल्य कारण नियोजन में उत्पन्न विभिन्न कठिनाइयां एवं सीमाओं का होना है जिनके कारण इसकी कटु शब्दों में आलोचनाएं की जाती है इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:

1.सर्वोत्तम विकल्प के चुनाव में कठिनाई

नियोजन में विभिन्न विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ का चुनाव किया जाता है परंतु कौन सा विकल्प श्रेष्ठ है इसका निर्णय कौन करेगा यह व्यक्ति के अनुसार एक विकल्प हो सकता है और दूसरे व्यक्ति के अनुसार दूसरे विकल्प यह नहीं वर्तमान में कोई एक विकल्प पर श्रेष्ठ होता है और भविष्य में बदली हुई परिस्थितियों में दूसरा विकल्प पर श्रेष्ठ प्रतीत होता है।

2.लोच शीलता का अभाव 

नियोजन के कार्य में एक अन्य कठिनाई प्राप्त लोक का अभाव होना है।

विलियम न्यून के अनुसार नियोजन जितना अधिक विस्तृत होगा उनमें उतना ही ज्यादा लोक हीनता होगी लोक के अभाव में प्रबंधक उत्साह विहीन हो जाते हैं।

जिससे वह उपक्रम की कार्य में पूर्ण रुचि नहीं ले पाते हैं प्रबंधक पूर्व निर्धारित नेशन पद्धतियों तथा कार्यक्रम के अनुसार कार्य करने के लिए बातें होती हैं।

और परिस्थितियों के अनुरूप उनमें संशोधन की आवश्यकता होने पर भी ऐसा नहीं कर सकते इस प्रकार को लोच हीनता के कारण नियोजन की संचालन में कठिनाइयां उत्पन्न हो जाती है।

3. पर्याप्त मानसिक योग्यता का अभाव:

उर्वी के अनुसार नियोजन्म मूल रूप से एक मानसिक अवस्था है एक बौद्धिक प्रक्रिया केवल वह तकनीकी रूप से प्रशिक्षित वह अनुभवी व्यक्ति की नियोजन का कार्य कर सकते हैं परंतु संस्थानों मे प्रया: ऐसे व्यक्तियों की कमी पाई जाती है जिससे त्रुटि पूर्ण योजनाएं ही बन पाती है।

4. मनोवैज्ञानिक बाधाएँ

मनोवैज्ञानिक बाधाएँ भी योजनाओं के निर्माण एवं उनकी क्रिया उन्वयन में बाधाएँ उत्पन्न करती हैं।

इनमें से प्रमुख बाधा यह है कि अधिकांश व्यक्तियों की तरह अधिशासी भी तुलना में वर्तमान को अधिक महत्व देते हैं इसका कारण यह है

कि भविष्य की तुलना में वर्तमान न केवल अधिक निश्चित है अपितु वंचित भी है नियोजन में अनेक ऐसी बातों को सम्मिलित किया जाता है।

जिनकी अधिशासी इस आधार पर अपेक्षा एवं विरोध करते हैं उन्हें भी अभिक्रिया नियमित नहीं किया जा सकता हैं।

5.अरुचिकर कार्य

यदि देखा जाए तो योजना बना ही एक अरुचिकर कार्य है कभी-कभी और रुचिकर कार्य होने के कारण भी नियोजन असफल रहता है एलान के अनुसार कभी-कभी कठिन एवं अरुचिकर कार्यों के कारण नियोजन असफल होता है।

6.हिस्सेदारी का अभाव

विद्वानों का मत है कि नियोजन के निर्माण में प्रबंधक को प्रशंसकों विशेष्य क्यों एवं मनोवैज्ञानिकों को समुचित हिस्सेदारी मिलनी चाहिए जिसका इस प्रक्रिया में अभाव पाया जाता है यही कारण है जिसके अभाव में नियोजन अपनी कर व्यापकता सिद्ध नहीं कर पाता।

7.सीमित व्यावहारिक मूल्य

कुछ आलोचकों का यह मत है कि नियोजन को सभी परिस्थितियों में व्यावहारिक नहीं किया जा सकता तथ्यों के ऊपर आधारित होने के बावजूद भी नियोजन में अवसरवादी का पूरा स्थान मिलता है।

नियोजन तथ्यों को इस प्रकार तोड़ मरोड़ का प्रस्तुत करते हैं जो की नियोजन की समस्त ऊपर देता को समाप्त कर देता है।

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